मन की शान्ति कैसे मिले भाग-1
मन की शांति का सबसे सरलतम उपाय
"मन की शान्ति कैसे मिले"
भाग-1
🙏
मेरे प्यारे भाइयों बहनों हमें अपने जीवन में भले ही कितनी उपलब्धियां मिल जाए
परंतु
यदि मन की शांति नहीं मिली तो सब व्यर्थ प्रतीत होता है
मन की शांति आखिर है क्या और
हमारे जीवन में इसकी उपलब्धि कैसे हो ?
इस विषय पर मैं पूर्ण प्रयास करूंगा कि मेरे गुरुदेव "श्री भगवान" ने जैसे जिस प्रकार अनुभव , ज्ञान और कृपा प्रदान कर मुझे शांति प्रदान की
उसी प्रकार आपके जीवन में भी शांति का प्रादुर्भाव हो।
मेरे प्यारे दोस्तों सर्वप्रथम तो मैं यह बताना चाहूंगा कि यह सुख और दुख मन की माया अर्थात भावनाओं का खेल है।
इन सुख और दुख की वृत्तियों से मुक्त हुए बिना शांति असंभव है।
क्योंकि यह सुख दुख भी हमारे मन के आसक्तियों अर्थात मोह के कारण उत्पन्न होती है
मन की शांति का परिस्थितियों से कोई लेना-देना नहीं,
भावनाएं यदि नियन्त्रण में तो मन सदैव स्थिर और शांत रहता है
काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार आदि भावनाओं की शिथिलता ही हमारे मन के शांति की अवस्था है।
हमारा संपूर्ण जीवन इन्ही भावनाओं की माया में ही उलझा रहता है।
सुख-दुख की भावना से ऊपर उठकर ही हम शांति को प्राप्त कर सकते हैं।
सबसे पहले हम यह जानते हैं कि सुख और दुख है क्या ?
सुख और दुख हमारे मन की क्रियाएं अर्थात भावनाएं हैं
जब हम किसी काम में को लक्ष्य बनाकर कर्म करते हैं
तब हमारा मन कार्य सिद्धि अथवा फल प्राप्ति की कामना के वशीभूत हो जाता है
कार्य प्रारंभ करने से पूर्व ही हम फल और उसके तरह-तरह की कामनाओं के स्वप्नजाल बुनने लगते हैं
यह स्वप्नजाल ही हमारे सुख और दुख का कारण होती है।
फल यदि मन वांछित हो तो सुख और यदि विपरीत हो तो दुख की अनुभूति होती है
संसार की परिवर्तनशीलता के कारण ना तो कभी सुख स्थिर रह सकता है और ना ही कभी दुख स्थिर हो पाता है।
इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे
जैसे किसी नन्हे बालक की कामना के अनुरूप उसे उसका मनपसंद खिलौना मिल जाए तो
वह बालक बहुत ही प्रसन्न होकर सुख की अनुभूति करने लगता है
परंतु उस खिलौने से मिलता हुआ सुख धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है।
पहले दिन वो बालक पूरा दिन उस खिलौने को सीने से लगाए खेलने और सब को दिखाने में आनंद लेता रहता है।
दूसरे दिन कुछ ही घंटे उसमें दिलचस्पी दिखाता है
परंतु कुछ ही दिनों में उस खिलौने के प्रति उस बालक की आसक्ति समाप्त होती जाती है।
कुछ दिनों बाद वो खिलौना घर के किस कोने में पड़ा है उस बालक को भी इसकी शुधि नहीं होती है ।
मेरे प्यारे दोस्तों यही अवस्था हमारे मन की होती है कि हम कोई भी सुख साधन अवस्था-ब्यवस्था भले ही प्राप्त कर ले
परंतु
उससे मिलने वाला सुख हमेशा स्थिर नहीं रह सकता
क्योंकि
हमारे मन को उस सुख सुविधा की आदत हो जाती है
जिसके कारण हमारे मन से सुख की वो अनुभूतियां धीरे-धीरे लुप्त हो जाती है
परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है
जो संसार को चलायमान रखे हुए।
यदि हमें जीवन में शांति प्राप्त करनी है
तो
हमें अपने मन की भावनाओं को सूक्ष्मता से समझना और नियंत्रण पाना होगा।
जैसे कि हमारा मन किन परिस्थितियों में कैसी और किस भावना में डूब जाता है और क्यों डूब जाता है ?
और
उस भावना के कारण हमारी कैसी मनोदशा हो जाती है ?
वैसे तो हमें सत्संग और भागवत कथाओं से बहुत सारे ज्ञान और प्रेरणाएं मिलती हैं
जो हमारे मन की शांति के लिए मील का पत्थर होती है
परंतु
वह ज्ञान भी आवश्यकता पड़ने पर वैसे ही लुप्त हो जाता है
जैसे
शमशान भूमि से निकलने के बाद हमारा वैराग्य लुप्त हो जाता है।
🙏
शांति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारे मन के भीतर निवास करने वाली असंख्य भावनाओं में पांच भावनाएं ऐसी हैं जिन्हें हम पंच विकार के रूप में जानते हैं।
जैसे कि - काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह और अहंकार।
यही पंच विकार वास्तव में माया का मूल स्वरूप है।
जिनके कारण ही हम जीवन भर सुख-दुख, हानि-लाभ,जय-पराजय,मान-अपमान द्वेष-क्रोध ईर्ष्या राग(आसक्ति) आदि भावनाओं में डूबते रहते हैं।
जो हमारे मन की अशांति का सबसे बड़ा कारण होती है।
मन की शांति इन भावनाओं से ऊपर उठने के पश्चात ही मिलती है।
हमें इन भावनाओं से मुक्त होना भले ही असंभव दिखाई देता हो
परंतु
इस जगत के रचयिता "जगत पिता" परमात्मा के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है।
वह घट घट वासी है और सर्वव्यापी भी।
किसका किस माध्यम और कैसे कल्याण करना है ?
हमारे लिए क्या आवश्यक है और क्या अनावश्यक है?
वे सब कुछ भली-भांति जानतें हैं।
उन की लीलाएं और कृपाएं हमारी बुद्धि और कल्पना से भी परे है।
अब सवाल यह है कि हमें प्रभु जी की कृपा कैसे प्राप्त हो।
🙏
मेरे प्यारे दोस्तों हम सत्संग विहीनता के कारण यह नहीं जानते हैं कि श्रीमद् भागवत गीता में श्री भगवान ने ऐसी है उपाय बताई है
जिनसे हमारे जीवन में शांति और मुक्ति एकदम सहज और सरलता से प्राप्त हो जाएगी।
वह है "भगवद् आश्रय" अर्थात "परमात्मा की शरणागति"।
अधिकांशत भाई बहन की यह समझते हैं कि अपने कर्म का त्याग करके परमात्मा की पूजा ध्यान साधना ही परमात्मा की शरणागति है
परंतु
वास्तव में शरणागति अर्थात समर्पण हमारे हृदय का एक भाव होता है
जिसमें हृदय के सच्चे भाव से स्वयं को परमात्मा के प्रति अर्पण कर देना ही समर्पण अर्थात शरणागति है।
कई भाई-बहन सवाल करते हैं कि-
"हम कैसे विश्वास करें कि "भागवत गीता* "परमात्मा" की ही वाणी है अथवा किसी साधु सज्जन का लेख है।"
इस अंतर्द्वंद से भी हमें निजात मिल जाएगी
जब हम परमात्मा के शरणागत हो जाएंगे
जब हमें परमात्मा की शरणागति प्राप्त हो जाएगी।
जैसे मेरे जीवन में घटित हुआ था।
क्योंकि जब मैंने समर्पण की प्रार्थना की थी तब एक निश्चल बालक की भांति निष्पक्ष भाव से ईश्वर और अल्लाह दोनों का आवाहन किया था ।
फिर भी मुझे जो अनुभूतियां और भगवत कृपाऐं प्राप्त हुई
उसकी पुष्टि केवल भागवत गीता के माध्यम से ही हुई ।
अर्थात भगवत कृपा से भागवत गीता को मैंने अपने अनुभव में सत्य पाया।
वैसे भी मेरे प्यारे भाइयों बहनों सत्य स्वयं सिद्ध होता हैं
सत्य को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है
जब आप समर्पण करेंगे तो आपके जीवन में सत्य स्वयं सिद्ध हो जाएगा।
इसीलिए प्रभु जी ने कहा है कि -
"सर्व धर्मान परित्यज्यै ,
मामेकं शरणं व्रज,
अहॅत्वा सर्वपापेभ्योः,
मोक्ष्श्चामि माशुचा।"
अर्थात - "सभी धर्मों और उसके भेदों(मतों) को भुलाकर केवल मेरी शरण में आ जाओ
मैं तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से मुक्ति देकर शाश्वत शांति और मोक्ष प्रदान करूंगा।
सचमुच में मेरे प्यारे भाइयों बहनों प्रभु जी के इन कथनो को अपने जीवन में सत्य सिद्ध होते हुए देखा है
उसी से ही प्रेरणा पाकर हूं मैं फेसबुक और अन्य वेबसाइटों पर केवल प्रभु शरणागति की ही भावना का प्रसार करता रहता हूं।
लक्ष्य केवल एक ही है जनकल्याण।
अब सवाल ये है कि
हमें परमात्मा की शरण कैसे मिले ?
क्योंकि लोग इसे बहुत दुर्लभ मानते हैं।
वास्तव में परमात्मा की शरणागति बड़ी ही सहज और सरल भी है इस संदर्भ में हम अगले लेख में काफी विस्तार पूर्वक जानेंगे।
हमारा यह लेख आपके हृदय पर कैसा प्रभाव कर रहा हैं
आप अवश्य व्यक्त करें।
अच्छा लगे तो शेयर भी करें।
इससे हमें अधिकाधिक भगवत प्रदत्त कृपाऐ और प्रेरणाएं बांटने की प्रेरणा मिलेगी ।
"परमात्मा आपको अपना निर्मल आश्रय प्रदान करें"
🙏 जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की🙏
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है।
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
🙏
।।जय श्री हरि।।
1 टिप्पणियाँ:
मन की अशांति के अनंत कारण होते हैं परंतु निदान बहुत ही सहज और सरल है वह है *परमात्मा की शरणागति"
मेरे प्यारे भाइयों बहनों मन की शांति पाना भले ही हमें असंभव दिखाई दे,
परंतु
मन की शांति प्रदान करना परमात्मा के लिए असंभव नहीं है
मेरे गुरुदेव"श्री भगवान" ने मुझे अनुभव स्वरूप न केवल प्रदान किया
बल्कि
जनसेवार्थ "समर्पण भाव" बांटने के लिए संकल्पबद्ध भी कराया।
मेरा लक्ष्य आपके जीवन में शांति के साथ साथ उन आध्यात्मिक कृपाओं का भी उद्गम कराना है जो कि अति दुर्लभ और अति आवश्यक भी है
"समर्पण भाव" कोई पूजा पाठ अथवा योग साधना नहीं
यह परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने का एक विशुद्ध भाव मात्र है।
एक बार आजमा कर अवश्य देखें
मन के शांति की सौ परसेंट गारंटी है।
🙏
आपका अपना एक प्रभु शरणागत सेवक।
।। जय जय श्री सीताराम।।
https://youtu.be/RFF3Pep5aYE
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