मन को शांति कैसे मिले, मन की शांति पाने का सरलतम उपाय क्या है,माया क्या है,माया से मुक्ति कैसे मिले? भवसागर क्या है, ईश्वरीय अनुभवों ,भगवद कृपाओं, शरणागति (समर्पण) की प्रेरणाओं सहित प्रभु प्रदत्त अनन्त अनमोल ज्ञान और प्रेरणाओं का अनूठा संगम अर्थात "भगवद प्रसाद"

शनिवार, 22 मई 2021

Honi or Anhoni

 

Honi or Anhoni.



Corona or Prabhu Sharnagti 





Prabhu Sharnagti



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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

पूर्ण समर्पण | अनुभव एक सफल समर्पण की | मन के शांति की गारंटी | Prabhu s...

सादर सहृदय नमस्कार मेरे प्यारे भाइयों बहनों ।

जय जय श्री राधे कृष्णा ।

आज हम इस वीडियो में एक बहुत ही प्रेरणादाई अनमोल भावपूर्ण अनुभव के माध्यम से यह जानेंगे कि

 समर्पण, शरणागति क्या है इसके क्या लाभ है? और
कैसे जाएं प्रभु शरण में ?

मेरे प्यारे दोस्तों समर्पण कोई साधना, पूजा-पाठ अथवा मंत्र जाप नहीं है ।

समर्पण तो हमारे हृदय का वह विशुद्ध भाव है जिसमें हम स्वयं को परमात्मा के प्रति अर्पण कर देतें हैं ।
समर्पण अर्थात स्वयं को अर्पण करना।
 अर्थात 
अपने जीवन नैया की पतवार , जिम्मेदारी परमात्मा के हाथों में सौंप देना है।

यह वो आत्मकल्याणकारी भाव है
जिसमें अपने बुद्धि , ज्ञान की श्रेष्ठता का भाव अर्थात अहं-अहंकार ही परमात्मा को अर्पण करना होता है ।

मेरे प्यारे दोस्तों लगभग पिछले 15 सालों से फेसबुक आदि सोशल मीडिया के माध्यम से समर्पण भाव ही बांटता रहा हूं।

क्योंकि प्रभु जी ने एक सच्चे गुरु के रूप में इसी भाव को ही बांटना जीवन का सर्वश्रेष्ठ सेवा मार्ग बताया है।

🙏

वीडियो
में
देखें

🙏






यह तो हमारे हृदय का एक विशुद्ध भाव मात्र हैं
जिसमें हमें अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ही परमात्मा को अर्पण करना होता है ।
इसलिए
आप जिसकी भी भक्ति करते हैं करते रहें ।
परंतु
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि आप किसके भक्त हैं ।

 आपकी बुद्धि और ज्ञान में जो प्रभु श्री राम , श्री कृष्ण, शिव , निराकार-साकार , ईसा मसीह ,साईं राम , अल्लाह आदि के प्रति जो श्रेष्ठता का भाव है 
वो सब भूल जाएं क्योंकि सबका मालिक एक है।

और निर्मल और निष्पक्ष भाव से प्रार्थना करें कि -  
प्रार्थना नंबर -1
"हे जगदीश्वर" "हे जगत के आधार" मैं अपना जीवन आपको अर्पण करता हूं ।
मेरे जीवन के लिए क्या अच्छा है क्या बुरा अब आपकी जिम्मेदारी है।

प्रार्थना नंबर -2
"हे प्रभु" मैं नहीं जानता कि आप ईश्वर हैं या अल्लाह परंतु आप जो भी हैं जैसे भी हैं मैं अब अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं आप के सुपुर्द करता हूं इसे अब आप ही संभालिए।

प्रार्थना नंबर -3
"हे नाथ" अब अपने इस जीवन नैया की पतवार आपके हाथों में सौंपता हूं अब इस जीवन को आप ही संभालिए ।

आप इनमें से कोई भी प्रार्थना सुबह जागने के बाद बिस्तर पर ही बैठे बैठे अथवा रात में सोते समय भी कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे भाइयों बहनों हम बचपन से ही जिस धर्म मजहब के संस्कारों के अनुसार पले और बड़े होते हैं ।

उनसे प्राप्त ज्ञान और उनके प्रति श्रेष्ठता का भाव-प्रभाव हमारे हृदय पर ऐसा होता है कि 
हम अपने अहम का पूर्णतया त्याग नहीं कर पाते हैं।

इसलिए प्रातः स्नान के बाद एक लोटा यह अथवा एक अंजलि जल लेकर उसे गिराते हुए समर्पण की प्रार्थना एक बार जरूर करें।

ऐसा करने से हम परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने के लिए संकल्पबद्ध हो जाते हैं ।

जिसके कारण यदि हमारे समर्पण भाव में अशुद्धि हो तो भी वह पूरक हो जाती है ।

इसलिए समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार जल के साथ अवश्य करें 
और
अपने बच्चों के जीवन को भी आरक्षित-सुरक्षित करने के लिए उनसे भी करवाएं ।


मेरे प्यारे भाइयों बहनों आपके इस सेवक की समर्पण की प्रेरणा कैसी लगी यह कमेंट में जरूर बताएं ।

यदि कोई जिज्ञासा अथवा प्रश्न हो तो कमेंट में जरूर लिखें।
आपकी जिज्ञासा ही मेरी प्रेरणा है।

जनहित में इस वीडियो को शेयर जरूर करें।

मैं इस चैनल के माध्यम से इससे भी अधिक भावपूर्ण और प्रेरणादाई अनुभव और भगवत प्रदत अनमोल ज्ञान प्रसाद बांटता रहूंगा ।
जिससे आपके जीवन में शांति प्रेम आनंद और अनंत भगवत कृपाओं का प्रादुर्भाव हो।

इसलिए हमारे इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें ।

जिससे आपको हमारे नए वीडियो की सूचना मिलती रहे।

इसी के साथ ही मैं इस वीडियो को यहीं विराम देता हूं
फिर मिलेंगे किसी प्रेरणादाई अनुभव के साथ।

प्रभु जी आप सभी को अपना निर्मल आश्रम प्रदान करें ।

।। जय श्री हरि ।।

मंगलवार, 12 मई 2020

bhagwat geeta all part | श्रीमद् भागवत गीता | सम्पूर्ण भाग

bhagwat geeta all part | श्रीमद् भागवत गीता | सम्पूर्ण भाग



भागवत गीता.1



भागवत गीता.2





भागवत गीता.3


भागवत गीता .4



भागवत गीता .5




भागवत गीता .6




भागवत गीता .7





भागवत गीता .8



भागवत गीता .9



भागवत गीता .10




भागवत गीता .11



भागवत गीता .12



भागवत गीता .13



भागवत गीता .14



भागवत गीता .15



भागवत गीता .16



भागवत गीता .17



भागवत गीता .18




भागवत गीता .19



भागवत गीता .20



भागवत गीता .21



भागवत गीता .22




भागवत गीता .23



भागवत गीता .24




भागवत गीता .25



भागवत गीता .26



भागवत गीता .27



भागवत गीता .28



भागवत गीता .29



भागवत गीता .30



भागवत गीता .31



भागवत गीता .32



भागवत गीता .33



भागवत गीता .34



भागवत गीता .35




भागवत गीता .36 (आखरी और सबसे महत्वपूर्ण भाग)





श्रीमद् भागवद गीता ,gita ,श्री कृष्णा ,Bhagavad Gita ,peace Of Mind, Ramanand Sagar, Shri Krishna Geeta all part


🙏🏻
क्या भागवत गीता सच में परमात्मा के ही द्वारा दिया गया दिव्य ज्ञान है
अथवा किसी संत महात्मा या पंडितों की रचना , कल्पना है।
इस सत्य का ज्ञान आपको आप ही हो जाएगा
यदि आप नीचे दिए गए प्रार्थना को एक बार स्वयं सच्चे हृदय से कर लें।
जो कि अर्जुन के द्वारा किए गए प्रश्नों के अंत में परमात्मा के द्वारा अपनी ओर से दिया गया दिव्य ज्ञान है
जिसे मैंने अपने जीवन के अनुभवों में पूर्ण सत्य और सिद्ध पाया है।


सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -

भागवत गीता



1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।




2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"




3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।




4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।




प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।






बुधवार, 6 मई 2020

आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ।

🙏 शांति ,मुक्ति, भक्ति और परमात्मा की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।

🙏🏻

आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ।



भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।



🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏



सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।

जय जय श्री राधेकृष्णा।



"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"





शंका ना करना

  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।



क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए

उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है



अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।

तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है



सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।



क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है

जिन्हें हम भवसागर कहते हैं

भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है

जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।



"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"

(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -







1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ

इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।







2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,

मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"







3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु

 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।





4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।

अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।

आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं

हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।







प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना

अर्थात

अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना

अतः

समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है

क्योंकि

यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं



ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए

जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,

इसलिए

कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।



आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा

तथा

जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।



प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।



कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ

ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है

जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।

क्योंकि

प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।



☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।

एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है

जो कि

हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध

भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।



जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆



साथ ही

ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है

वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे

उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।



समर्पण में परमात्मा के प्रति केवल भाव से स्वयं को अर्पण ही करना होता है

शेष कार्य प्रभु जी स्वयं कर और करा देते हैं।



🙏🏻

।।जय श्री हरि।।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

शरणागति की सफलता का रहस्य "पूर्ण समर्पण"

 शरणागति की सफलता का रहस्य

"पूर्ण समर्पण"






_/\_
भगवद कृपा से शान्ति ,मुक्ति ,भक्ति आपके जीवन मेँ सहज हो जाऐगी
यदि आपको प्रुभु सँरछण अर्थात "भगवद शरण" मिल जाऐ ।
"समर्पण" की सफलता का एक ही आधार है -"पूर्ण समर्पण" ।

तो आइये जानेँ पूर्ण समर्पण क्या है ?

"पूर्ण समर्पण" ना तो घर-द्वार छोड़ सन्यास को कहतेँ है
और ना ही अपनी जिम्मेदारियोँ(कर्तब्योँ) का त्याग पूजन आदि लगने को कहते हैँ ।

"पूर्ण समर्पण" है परमात्मा मेँ पूर्ण विश्वास भाव से अपने जीवन का समस्त भार(दायित्व) परमात्मा को सौँप देना
परन्तु
एक अज्ञानी अबोध बालक की भाँति ।

अज्ञानी अबोध बालक का तात्पर्य है कि - "हमारे भीतर तनिक भी अपने ज्ञान के प्रति श्रेष्ठता का भाव(अहँकार) ना हो कि श्री राम ही सत्य,
श्री कृष्ण ही सत्य,
श्री शिव ही सत्य,
अल्लाह सत्य ,साँई सत्य , कबीर सत्य ,ईशा सत्य आदि आदि
इस प्रकार की सत्यता का भाव भी अहँकार का ही प्रतीक होता है
जब कि
समर्पण मेँ इन्ही श्रेष्ठता के भावोँ का ही बलिदान चढ़ाना होगा ।
_/\_
*इस कथन पर सँदेह ना कीजिएगा क्योँ कि भविष्य मेँ सत्य स्वयँ सिद्ध हो जाऐगा और आपका भगवद प्रेम भी अगाध हो जाऐगा*

उदाहरण स्वरूप जब मैने भगवद सत्ता के सम्मुख समर्पण किया तो उस समय प्रभु श्री राम ,प्रभु श्री कृष्ण और माँ जगदम्बा से अनन्य प्रेम था परन्तु
मैने अपने बुद्धि और ज्ञान के श्रेष्ठता के भावोँ को तूल देने के बजाय
एक पूर्ण अज्ञानी की भाँति अल्लाह को भी पुकारा और भगवान को भी वो कुछ इस प्रकार थी -
_/\_
"हे जगदीश्वर" ,"हे समस्त सृष्टि के आधार" कोई आपको अल्लाह पुकारता है तो कोई ईश्वर , आप हमारी ज्ञान ,बुद्धि और तर्क से परे हैँ
अतः आप जो भी हैँ ,जैसे भी है इस जीवन नैइया की पतवार अब आपको सौँपता हूँ इसे आप ही सम्भालिए ।

"पूर्ण समर्पण" का दूसरा आधार है -"अपनी समस्त इच्छाऐँ-कामनाऐँ परमात्मा को अपर्ण कर देना है
अर्थात
अपना बर्तमान और भविष्य जगत प्रभु जी की इच्छा पर छोड़ कर कर्म करना है ।"

ऐसा तभी सम्भव है जब हमारे ज्ञान और बुद्धि मेँ ये भाव हो कि - जगदीश्वर ही इस जगत मेँ "सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता और दाता हैँ
 "हम अपने अल्प ज्ञान और अल्प बुद्धि से जिस विषय और वस्तु को मायावश सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि मानतेँ हैँ
कदाचित सम्भव है कि वो ज्ञान सागर परमात्मा की दृष्टि मेँ तुच्छ ,सारहीन और अमँगलकारी हो ।

क्योँ कि
हमारे लिए क्या आवश्यक है और क्या अनावश्यक इसका प्रभु जी को भली भाँति ज्ञान होता है ।

पूर्ण समर्पण और सफलता का तीसरा आधार है -
"समर्पण का सँकल्प"

हम सभी ने पौराणिक कथाओँ मे देखा-सुना ही होगा कि जब कोई विशेष निर्णय लिया जाता है तो हाथोँ मेँ जल लेकर अपने वचन ,निर्णय ,दान अथवा श्राप देते हुए धरती पर गिराया जाता है यही क्रिया सँकल्प होती है ।

उदाहरण स्वरूप जब तक प्रह्लाद पौत्र राजा बलि ने हाथोँ मेँ जल लेकर तीन पग धरती दान करने का सँकल्प नही कर लिया
तब तक वामन रूप प्रभु जी ने अपना पग नही बढ़ाया
परन्तु
राजा बलि के सँकल्पबद्ध होते ही दो पग मे सारी धरती नाप ली
क्योँ कि
अब राजा बलि भी सँकल्पबद्धता के कारण अपने वचन से मुकरने का अधिकार खो बैठे थे ।


मैँ प्रायः अपने सफल शरणागति के सम्बन्ध मेँ जब डूब कर इसका अध्ययन करता हूँ कि -
 "आखिर बचपन मेँ महात्मा ने माँ को एक लोटा जल गिराते हुए समर्पण के प्रार्थना करने और कराने की प्रेरणा क्योँ दी ?
तो
अन्तरात्मा एक ही निष्कर्ष निकालती है कि -
"हमारे समर्पण की सफलता के लिए हम सभी मेँ प्रायः वो भाव नही होते जिसका होना आवश्यक है ।

इसी कारण ही उस महान सन्त आत्मा ने हमेँ समर्पण के साथ-साथ जल अर्पण कर सँकल्प लेने की प्रेरणा दी ।
ये सँकल्प मात्र एक बार ही करना प्रयाप्त है
परन्तु
भगवद विषय है अतः अपनी सुविधा और इच्छानुसार प्रतिदिन करेँ तो भी कोई हर्ज नही ।

_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ मेरे जीवन का मुख्य लछ्य ही यही है कि
आपके जीवन मेँ भगवद कृपा का आधार हो ,
आपके जीवन मेँ शान्ति ,मुक्ति ,भक्ति ,प्रेम और आनन्द का सँचार हो ।
क्योँ कि
 इसी सेवा को ही प्रभु जी ने सर्वोपरि जताया और जनसेवार्थ सँकल्पबद्ध भी कराया है ।

 अतः समर्पण की प्रेरणा सहित अपने इस सेवक का _/\_प्रणाम स्वीकार करेँ ।

_/\_प्रभु जी हम सभी को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।

।।जय जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .




_/\_
जय जय श्री राधेकृष्णा प्रिय प्रभु भक्तोँ ।

"भगवद प्रसाद"
"हमारे व अपनोँ के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण ,सद्गुण प्रदायिनी ,भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"

"(जिसे स्वयँ के साथ बच्चोँ से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ)" -

1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।"

2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपकी ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"

शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ परमात्मा के श्री चरणोँ मे विलीन कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर जगदी भीश्वर को सौँप देना

प्रभु रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी


ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही बाँट रहा हूँ ।

जिसकी सफलता आपके विश्वास पर निर्भर है ।

🙏🏻 जय श्री हरि🙏🏻


प्रभु शरणागत भक्त


शनिवार, 18 अप्रैल 2020

आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।

🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।


भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


शंका ना करना
  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।

क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
परमात्मा की शरणागति



1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।



प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

परमात्मा भी निभाते हैं सच्चे गुरु की भूमिका स्वानुभूतियां


कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

परमात्मा के प्रति एक बार समर्पण करके तो देखिए
शांति, मुक्ति, प्रेम और आनंद का द्वार सहज खुल जाएगा।
तत्पश्चात
अपने अनुभव कमेंट बॉक्स में अवश्य शेयर कीजिएगा

जिससे हमें और अधिक से अधिक अनुभव वीडियो के माध्यम से शेयर करने की प्रेरणा मिलेगी।

आपका अपना भक्तों का सेवक - प्रभु शरणागत भक्त
_/\_
।।जय श्री हरि।।
Man.ki.Shanti..samarpan

प्रभु शरणागत भक्त



शनिवार, 11 अप्रैल 2020

Bhagavad Gita, part-1 और भावपूर्ण अनमोल प्रेरणाएं

🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित। 
भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


शंका ना करना 
  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।

क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए 
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -



1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं 
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।



प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है 
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।
 
आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा 
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि 
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध 
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

परमात्मा के प्रति एक बार समर्पण करके तो देखिए
शांति, मुक्ति, प्रेम और आनंद का द्वार सहज खुल जाएगा।
तत्पश्चात
अपने अनुभव कमेंट बॉक्स में अवश्य शेयर कीजिएगा

जिससे हमें और अधिक से अधिक अनुभव वीडियो के माध्यम से शेयर करने की प्रेरणा मिलेगी।

आपका अपना भक्तों का सेवक - प्रभु शरणागत भक्त
_/\_
।।जय श्री हरि।।

मंगलवार, 24 मार्च 2020

प्रेरणात्मक परिचय

🙏🙏🙏
"परिचय"



मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ मेरा नाम शिवप्रसाद
बर्मा है ।
🙏
इस ब्लाग को बनाने का मूल उद्देश्य है
आप सभी भगवद स्वरूपों के जीवन में शान्ति,मुक्ति, भक्ति, प्रेम और आनन्द जैसी अनन्य भगवद कृपाओं को सहज और शुलभ कराना है
ठीक उसी प्रकार जैसे सर्वब्यापक,अन्तर्यामी, सर्वसमर्थ प्रभु जी ने अनुभवों के माध्यम से मुझे प्रदान किया है।

क्यों कि प्रभु जी ने ही मुझे एक घटना के माध्यम से जनसेवार्थ जीने हेतु संकल्पबद्ध कराया था।
अतः आप मुझे अपना सेवक ही जानें।

अन्यथा मैं एकान्त प्रिय होने के कारण इस तरह के सोशल मीडिया पर ना होता।
क्यों कि
प्रभु जी जिसे अपने शरण में लेतें है
उसका मन सुख-दुख, लाभ-हानि, यश-अपयश, जय-पराजय , मोह-माया आदि मनोविकारों से मुक्त कर परम शांति प्रदान करते हुए
उसे अपने जीवन के समस्त धर्मों (कर्तब्यों) के प्रति सजग और सक्रिय कर देते हैं।


मैं एक अति साधारण गृहस्थ तथा आजीविका के
लिए गाजियबाद के एक कम्पनी मेँ स्प्रे पेँन्टर
की साधारण सी नौकरी करता हूँ ।
फेसबुक आइडी के रूप मेँ तीन आश्रम हैँ मेरे 1.प्रभु
शरणागत भक्त वर्मा ,2.शिवप्रसाद बर्मा ,3. प्रभु
शरणागत भक्त बर्मा।

समर्पण अर्थात शरणागति की प्रेरणाऐँ
बाँटना अपना परम धर्म मानता हूँ ।

केवल एक प्रार्थना ने इस जीवन को प्रभु कृपाओँ
से भर दिया
जिसे जन-सेवार्थ संकल्पबद्धता के कारण भगवद कृपा-प्रेरणा से
 "प्रभु
प्रसाद" मान कर बाँटता हूँ ।

स्वयँ को आप सभी सरल प्रभु भक्तोँ का सेवक
ही मानता हूँ ।

क्योँ कि प्रभु "लीलाधर" ने एक लीला ऐसी भी
खेली जिसमेँ मुझे अपने प्राण बचाने के लिए इस
जीवन को निःस्वार्थ सेवा मेँ लगाने का सँकल्प
लेना पड़ा ।
_/\_
आपके इस सेवक के जीवन की समस्त "प्रभु
लीलाओँ" का निचोड़ ऐसा ही है जैसे

"कोई भक्त प्रभु जी से एक निश्छल बालक की
भाँति ये प्रार्थना करे कि - "हे मेरे नाथ" मैँ
जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलना चाहता हूँ
परन्तु मुझे नही पता वो मार्ग कौन सा है
अतः आप ही मुझे जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर
चलाने की कृपा करेँ।"

प्रभु जी उस भक्त की सरलता और निष्काम सेवा भाव पर रीझ कर उसे
अपनी माया की प्रबलता और मानवीय विवशताओं से अवगत कराते हुए निःस्वार्थ
सेवा भाव से जनकल्यार्थ हेतु
"शरणागति"(समर्पण) की प्रेरणाऐँ बाँटने की कृपाऐं
प्रदान करते हुए दिखाते हैँ कि -

"तन ,मन और धन से की गई सेवा मात्र कुछ काल
तक के लिए ही सहायक है
परन्तु
यदि तुम्हारी प्रेरणा से कोई श्रद्धालु मेरी
शरणागत हो जाऐ तो मेरी अनन्य कृपाओं सहित उसका जीवन शान्तिमय
तथा जन्म-जन्मान्तर की भटकन से मुक्त होना
निश्चित है ।"


_/\_
"सचमुच" मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ ये अकाट्य
सत्य भी है कि
यदि हमे "सर्वसमर्थ जगतपिता" की शरण मिल
जाऐ तो
हम अपने अच्छे-बुरे प्रारब्ध को भोगते हुए भी सदैव
शान्तिमय , और मुक्त अवस्था मेँ स्थिर तथा
धर्मपरायण(कर्तब्यपरायण) रहतेँ हैँ ।

अतः आप भी "शरणागति भावना" को स्वयँ तक
सीमित ना रख कर अपने मित्रोँ ,बच्चोँ और
स्वजनोँ को भी परमात्मा की शरणागति की प्रेरणा प्रदान करें
जैसा कि
मेरी माता जी ने एक महात्मा जी की सत्सँग
की प्रेरणा से मुझे प्रदान किया था ।
बचपन मे माँ ने एक सत्सँग से प्रेरित हो एक
लोटा जल अर्पण करते हुए समर्पण की
प्रार्थना कराई थी ।(माँ का आदेश था कि एक
लोटा जल कहीँ भी चढ़ाते हुए कहना "हे ईश्वर
अब इस जीवन नैइया की पतवार आपको सौँपता
हूँ इसे अब आप ही सम्भालिए ।"


युवा अवस्था मे कदम रखते ही बड़े ही सरलता
भाव से एक बार फिर मैने जगदीश्वर को ही
माता ,पिता और गुरू मान समर्पण की
प्रार्थना करते हुए जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग
पर चलाने की प्रार्थना कर बैठा ।

शायद प्रार्थना इतनी निश्छल और सरल थी
कि प्रभु जी बड़ी सहजता से रीझ गये

जिसके बाद घट घटवासी प्रभु जी ने अपनी
लीलाओँ की झड़ी लगा दी ।
जिसमेँ एक तरफ काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह
,अहँकार आदि भावनाओँ की भयावहता का
दर्शन करा कर मानवीय विवश्ताओँ का दर्शन
कराने के साथ-साथ सबके प्रति समान प्रेम और
दया का भाव तो जगाया ही
वहीँ
दूसरी तरफ वैराग्य निष्काम कर्म योग
,निश्चल भाक्ति ,प्रेम ,शान्ति आदि प्रदान
कर निःस्वार्थ सेवाभाव से जीवन जीने का
सँकल्प भी कराया ।

प्रभु जी की समस्त लीलाऐँ मेरे लिए अकल्पनीय
और समझ से परे थी ।
ऐसे मे
श्री भगवद गीता का लेख और प्रभु भक्तों की संगति के पश्चात पता
चला कि

प्रभु जी के समछ पूर्ण विश्वास और सरलता
पूर्वक स्वयँ को अपर्ण कर देना कोई साधारण
बात ना थी
यही वो भाव है
जो जगतपिता"श्री भगवान"ने श्री भागवत गीता में भी इसी भाव को सर्वश्रेष्ठ बताया है।
(अधिक जानकारी,प्रेरणा और विश्वनीयता के लिए भागवत गीता का ये वीडियो अवश्य देखिए)

तत्पश्चात जब मैने अपने अब तक के जीवन की
समीछा की तो पाया कि
प्रभु जी को अपने जीवन का भार अर्पण कर देने
से वो कैसे हमेँ भवकूपोँ(दुर्भावनाओँ) से हमारे
चरित्र की रछा करते हुए सदमार्ग पर अग्रसर
करतेँ है
फेसबुक पर केवल यही सोचकर शरणागति भावना
का प्रसार करना आरम्भ किया कि -
"जो भगवद परायण होते है उनका जीवन
भटकाव रहित हो निष्पाप हो जाता है
परन्तु
उस समय तक भी मैँ सत्सँग विहीन प्रभु
लीलाओँ को पूर्णरूप से समझ ना पाया था ।
फेसबुक पर कई ज्ञानी महात्माओँ और मित्रोँ के
ज्ञानमयी और भगवद गीतामयी पोस्टोँ के
माध्यम से मुझे ये ज्ञात हुआ कि -
"प्रभु जी की महिमा अपरम्पार है"
"वो" अपने आश्रितोँ(शरणार्थियोँ)" की ना
केवल दुर्भावनाओँ से रछा करते हैँ
बल्कि वो स्थितियाँ और अवस्थाऐँ भी सहज
प्रदान करतेँ हैँ
जो हमेँ कई जन्मोँ की कठिन साधनाओँ से भी
दुर्लभ है ।

मुझे अच्छी तरह याद है जब मैँ मित्रोँ के
ज्ञानमयी पोस्टोँ को पढ़ते हुऐ प्रभु लीलाओँ
और उसके महत्व को निज जीवन तथा आचरण मेँ
देख परम आनन्द से भाव-विभोर हो मूर्तिवत
बैठा रह जाता और नेत्रोँ से अविरल प्रेमाश्रुओँ
की धारा बहने लगती
हृदय प्रभु प्रेम से सराबोर हो पुकार उठता -

🙏"धन्य हो प्रभु जी आप जो पापी से पापी
मनुष्योँ की भी "शरणागति" सहज स्वीकार कर
परम शान्ति ,प्रेमानन्द और मुक्ति आदि
प्रदान करना अपना धर्म मानते हो।"


🙏
"हे मेरे नाथ" आपके श्री चरणोँ मेँ कोटि-कोटि
प्रणाम् ।


_/\_
"प्रभु शरण परम हितकारी"


"अनमोल प्रार्थनाऐँ"-

🙏
"हे प्रभु" आपकी इस माया सँसार मेँ मेरा मन
सदैव विषय-विकारोँ मेँ ही डूबा रहता है
दुर्भावनाओँ की प्रबलता सदैव पापाचरण को
विवश करतीँ है
अतः "हे दीनदयालु ","हे जगतश्रेष्ठ" मैँ अपना
सबकुछ हार कर आपकी शरण आया हूँ नाथ ।

🙏
मुझ अधर्मी ,पाप के भागी को अब आपका ही
आसरा है
"हे कृपासिन्धु" मेरे इस तुच्छ समर्पण को
स्वीकार कर अपनी माया से अभयता दीजिए ।

🙏
"दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ ।"

🙏
पन्चतत्व की बनी कोठरिया जिसका नाम है
काया ,
हर एक जीव रहे इस घर मेँ दे कर साँस किराया
भक्ति के रँग मेँ रँग लो रे जीवन यही है मुक्ति
की नाड़ी ,
प्रभु के भरोसे हांको गाड़ी "हरि" के भरोसे
हांको गाड़ी ।

शनिवार, 14 मार्च 2020

भगवद कृपा और शरण प्राप्ति का सबसे सरलतम उपाय

भगवद कृपा और शरण प्राप्ति का सबसे सरलतम उपाय


मन की अशांति के अनंत कारण होते हैं
परंतु
 निदान बहुत ही सहज और सरल है
 वह है
"परमात्मा की शरणागति"


🙏

 मेरे प्यारे भाइयों बहनों मन की शांति पाना भले ही हमें असंभव दिखाई दे, परंतु मन की शांति प्रदान करना परमात्मा के लिए असंभव नहीं है


https://prabhusharanagti.blogspot.com/
मेरे गुरुदेव श्री भगवान
ने मुझे अनुभव स्वरूप न केवल प्रदान किया बल्कि जनसेवार्थ "समर्पण भाव" बांटने के लिए संकल्पबद्ध भी कराया।


 मेरा लक्ष्य आपके जीवन में शांति के साथ साथ उन आध्यात्मिक कृपाओं का भी उद्गम कराना है जो कि अति दुर्लभ और अति आवश्यक भी है "समर्पण भाव" कोई पूजा पाठ अथवा योग साधना नहीं यह परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने का एक विशुद्ध भाव मात्र है।



एक बार आजमा कर अवश्य देखें मन के शांति की सौ परसेंट गारंटी है।
 🙏
आपका अपना एक प्रभु शरणागत सेवक। ।






मन की शांति कैसे पाएं


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏



सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

रविवार, 23 फ़रवरी 2020

मन की शान्ति कैसे मिले भाग-1


मन की शांति का सबसे सरलतम उपाय
"मन की शान्ति कैसे मिले"
 भाग-1
🙏
मेरे प्यारे भाइयों बहनों हमें अपने जीवन में भले ही कितनी उपलब्धियां मिल जाए
परंतु
यदि मन की शांति नहीं मिली तो सब व्यर्थ प्रतीत होता है

मन की शांति आखिर है क्या और
हमारे जीवन में इसकी उपलब्धि कैसे हो ?

इस विषय पर मैं पूर्ण प्रयास करूंगा कि मेरे गुरुदेव "श्री भगवान" ने जैसे जिस प्रकार अनुभव , ज्ञान और कृपा प्रदान कर मुझे शांति प्रदान की

उसी प्रकार आपके जीवन में भी शांति का प्रादुर्भाव हो।


मेरे प्यारे दोस्तों सर्वप्रथम तो मैं यह बताना चाहूंगा कि यह सुख और दुख मन की माया अर्थात भावनाओं का खेल है।

इन सुख और दुख की वृत्तियों से मुक्त हुए बिना शांति असंभव है।

क्योंकि यह सुख दुख भी हमारे मन के आसक्तियों अर्थात मोह के कारण उत्पन्न होती है

मन की शांति का परिस्थितियों से कोई लेना-देना नहीं,
भावनाएं यदि नियन्त्रण में तो मन सदैव स्थिर और शांत रहता है

काम क्रोध लोभ मोह और अहंकार आदि भावनाओं की शिथिलता ही हमारे मन के शांति की अवस्था है।

 हमारा संपूर्ण जीवन इन्ही भावनाओं की माया में ही उलझा रहता है।

सुख-दुख की भावना से ऊपर उठकर ही हम शांति को प्राप्त कर सकते हैं।



सबसे पहले हम यह जानते हैं कि सुख और दुख है क्या ?

सुख और दुख हमारे मन की क्रियाएं अर्थात भावनाएं हैं

जब हम किसी काम में को लक्ष्य बनाकर कर्म करते हैं

तब हमारा मन कार्य सिद्धि अथवा फल प्राप्ति की कामना के वशीभूत हो जाता है
कार्य प्रारंभ करने से पूर्व ही हम फल और उसके तरह-तरह की कामनाओं के स्वप्नजाल बुनने लगते हैं
यह स्वप्नजाल ही हमारे सुख और दुख का कारण होती है।

फल यदि मन वांछित हो तो सुख और यदि विपरीत हो तो दुख की अनुभूति होती है

 संसार की परिवर्तनशीलता के कारण ना तो कभी सुख स्थिर रह सकता है और ना ही कभी दुख स्थिर हो पाता है।

इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे

जैसे किसी नन्हे बालक की कामना के अनुरूप उसे उसका मनपसंद खिलौना मिल जाए तो
वह बालक बहुत ही प्रसन्न होकर सुख की अनुभूति करने लगता है
परंतु उस खिलौने से मिलता हुआ सुख धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है।

पहले दिन वो बालक पूरा दिन उस खिलौने को सीने से लगाए खेलने और सब को दिखाने में आनंद लेता रहता है।

दूसरे दिन कुछ ही घंटे उसमें दिलचस्पी दिखाता है

परंतु कुछ ही दिनों में उस खिलौने के प्रति उस बालक की आसक्ति समाप्त होती जाती है।

कुछ दिनों बाद वो खिलौना घर के किस कोने में पड़ा है उस बालक को भी इसकी शुधि नहीं होती है ।

मेरे प्यारे दोस्तों यही अवस्था हमारे मन की होती है कि हम कोई भी सुख साधन अवस्था-ब्यवस्था भले ही प्राप्त कर ले
परंतु
उससे मिलने वाला सुख हमेशा स्थिर नहीं रह सकता
क्योंकि
हमारे मन को उस सुख सुविधा की आदत हो जाती है

जिसके कारण हमारे मन से सुख की वो अनुभूतियां धीरे-धीरे लुप्त हो जाती है

परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है
जो संसार को चलायमान रखे हुए।

यदि हमें जीवन में शांति प्राप्त करनी है
तो
हमें अपने मन की भावनाओं को सूक्ष्मता से समझना और नियंत्रण पाना होगा।

जैसे कि हमारा मन किन परिस्थितियों में कैसी और किस भावना में डूब जाता है और क्यों डूब जाता है ?
और
उस भावना के कारण हमारी कैसी मनोदशा हो जाती है ?


वैसे तो हमें सत्संग और भागवत कथाओं से बहुत सारे ज्ञान और प्रेरणाएं मिलती हैं

जो हमारे मन की शांति के लिए मील का पत्थर होती है
परंतु
वह ज्ञान भी आवश्यकता पड़ने पर वैसे ही लुप्त हो जाता है
जैसे
शमशान भूमि से निकलने के बाद हमारा वैराग्य लुप्त हो जाता है।


🙏
शांति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा हमारे मन के भीतर निवास करने वाली असंख्य भावनाओं में पांच भावनाएं ऐसी हैं जिन्हें हम पंच विकार के रूप में जानते हैं।

जैसे कि - काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह और अहंकार।

यही पंच विकार वास्तव में माया का मूल स्वरूप है।

जिनके कारण ही हम जीवन भर सुख-दुख, हानि-लाभ,जय-पराजय,मान-अपमान द्वेष-क्रोध ईर्ष्या राग(आसक्ति) आदि भावनाओं में डूबते रहते हैं।
जो हमारे मन की अशांति का सबसे बड़ा कारण होती है।

मन की शांति इन भावनाओं से ऊपर उठने के पश्चात ही मिलती है।

हमें इन भावनाओं से मुक्त होना भले ही असंभव दिखाई देता हो
परंतु
इस जगत के रचयिता "जगत पिता" परमात्मा के लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है।

वह घट घट वासी है और सर्वव्यापी भी।

किसका किस माध्यम और कैसे कल्याण करना है ?

हमारे लिए क्या आवश्यक है और क्या अनावश्यक है?
वे सब कुछ भली-भांति जानतें हैं।
उन की लीलाएं और कृपाएं हमारी बुद्धि और कल्पना से भी परे है।

अब सवाल यह है कि हमें प्रभु जी की कृपा कैसे प्राप्त हो।

🙏
मेरे प्यारे दोस्तों हम सत्संग विहीनता के कारण यह नहीं जानते हैं कि श्रीमद् भागवत गीता में श्री भगवान ने ऐसी है उपाय बताई है

जिनसे हमारे जीवन में शांति और मुक्ति एकदम सहज और सरलता से प्राप्त हो जाएगी।

वह है "भगवद् आश्रय" अर्थात "परमात्मा की शरणागति"।

अधिकांशत भाई बहन की यह समझते हैं कि अपने कर्म का त्याग करके परमात्मा की पूजा ध्यान साधना ही परमात्मा की शरणागति है
परंतु
वास्तव में शरणागति अर्थात समर्पण हमारे हृदय का एक भाव होता है

जिसमें हृदय के सच्चे भाव से स्वयं को परमात्मा के प्रति अर्पण कर देना ही समर्पण अर्थात शरणागति है।


कई भाई-बहन सवाल करते हैं कि-

"हम कैसे विश्वास करें कि "भागवत गीता* "परमात्मा" की ही वाणी है अथवा किसी साधु सज्जन का लेख है।"

इस अंतर्द्वंद से भी हमें निजात मिल जाएगी
जब हम परमात्मा के शरणागत हो जाएंगे
जब हमें परमात्मा की शरणागति प्राप्त हो जाएगी।

जैसे मेरे जीवन में घटित हुआ था।

क्योंकि जब मैंने समर्पण की प्रार्थना की थी तब एक निश्चल बालक की भांति निष्पक्ष भाव से ईश्वर और अल्लाह दोनों का आवाहन किया था ।

फिर भी मुझे जो अनुभूतियां और भगवत कृपाऐं प्राप्त हुई

 उसकी पुष्टि केवल भागवत गीता के माध्यम से ही हुई ।

अर्थात भगवत कृपा से भागवत गीता को मैंने अपने अनुभव में सत्य पाया।


वैसे भी मेरे प्यारे भाइयों बहनों सत्य स्वयं सिद्ध होता हैं
 सत्य को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है

जब आप समर्पण करेंगे तो आपके जीवन में सत्य स्वयं सिद्ध हो जाएगा।

इसीलिए प्रभु जी ने कहा है कि -

"सर्व धर्मान परित्यज्यै ,
मामेकं शरणं व्रज,
अहॅत्वा सर्वपापेभ्योः,
मोक्ष्श्चामि माशुचा।"

अर्थात - "सभी धर्मों और उसके भेदों(मतों) को भुलाकर केवल मेरी शरण में आ जाओ
मैं तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से मुक्ति देकर शाश्वत शांति और मोक्ष प्रदान करूंगा।

सचमुच में मेरे प्यारे भाइयों बहनों प्रभु जी के इन कथनो को अपने जीवन में सत्य सिद्ध होते हुए देखा है

उसी से ही प्रेरणा पाकर हूं मैं फेसबुक और अन्य वेबसाइटों पर केवल प्रभु शरणागति की ही भावना का प्रसार करता रहता हूं।
लक्ष्य केवल एक ही है जनकल्याण।

अब सवाल ये है कि
 हमें परमात्मा की शरण कैसे मिले ?

क्योंकि लोग इसे बहुत दुर्लभ मानते हैं।

वास्तव में परमात्मा की शरणागति बड़ी ही सहज और सरल भी है इस संदर्भ में हम अगले लेख में काफी विस्तार पूर्वक जानेंगे।

हमारा यह लेख आपके हृदय पर कैसा प्रभाव कर रहा हैं

आप अवश्य व्यक्त करें।
अच्छा लगे तो शेयर भी करें।

 इससे हमें अधिकाधिक भगवत प्रदत्त कृपाऐ और प्रेरणाएं बांटने की प्रेरणा मिलेगी ।

"परमात्मा आपको अपना निर्मल आश्रय प्रदान करें"

🙏 जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की🙏

***************************************



सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।

जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है।

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।

तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं

भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है

जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।


"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"



(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -

1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।

2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"

शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना

अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

🙏
।।जय श्री हरि।।

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